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Phoolan Devi: हिम्मत से सबको मुहतोड़ जवाब देने वाली फूलन देवी,सुन्दर लड़की से लेकर डाकू बनने का सफर

- August 10, 2022

Phoolan Devi: हिम्मत से सबको मुहतोड़ जवाब देने वाली फूलन देवी,सुन्दर लड़की से लेकर डाकू बनने का सफर

Biography Desk | ANN NEWS

दर्द सहकर अपने हाथो में हथियार उठाने वाली ,बड़ी ही हिम्मत से सबको मुहतोड़ जवाब देने वाली फूलन देवी। सामान्य और सुन्दर लड़की से लेकर डाकू बनने का सफर तय किया है फूलन देवी ने। हथियार उठाने के साथ साथ लाखो लोगो को मार गिराने वाली है फूलन देवी। आज उन्ही के इस सफर की पूरी कहानी हम बताने जा रहे है

फूलन देवी और उनका न्याय पर विश्वास

जब भी किसी पर अन्याय होता है तो वो न्याय की गुहार लगता है लेकिन जब उसे न्याय नहीं मिलता तोह उसका न्याय व्यवस्था पर से विश्वास उठ जाता है जो लोग कानून को हाथ में ले कर अपना बदला खुद लेते हैं, उनकी समाज में दो तरहा की छवि बन जाती है.‘दस्यु रानी’ फूलन देवी एक ऐसा ही नाम है, जो सोचने पर मजबूर कर देती है कि उसके बारे में कैसी राय बनाना उचित रहेगा उन क्या कहा जाये लोगो की हत्यारन या फिर एक देवी। फूलन देवी एक खुख्यात डकैत थी।

बचपन से ही बागी रही फूलन देवी

जब भी घर में बच्चा होता है तो फिर घर का माहौल एक त्यौहार जैसा बन जाता है लेकिन 10 अगस्त 1963 का वो वो दिन,वक़्त कुछ ऐसा था की घर पर दुःख के बादल छाए हुए थे मंज़र कुछ ऐसा था की घर बेटी हुई थी घर वालो में मातम छा गया था। चिंता उसको पालने की, चिंता उसको बड़ा करने की और चिंता उसकी शादी की. देवी दीन यानी की उनके पिता ने अपनी बेटी का नाम रखा फूलन। अपने मां-बाप के छः बच्चों में फूलन दूसरे नंबर पर थी वह इतनी अलग थी कि सही-गलत की लड़ाई के लिए वह किसी से भी भिड़ जाती थी.

फूलन देवी कैसे बनी डकैत

20 साल की उम्र में फूलन को अगवा कर उसका बलात्कार किया गया. इससे पहले शादी के नाम पर भी वो कई साल से इसी पीड़ा को झेलती आ रही थी. पुलिस की मदद लेने का अंजाम वह पहले ही भुगत चुकी थी सो इस बार उसने हथियार उठाने का फैसला कर लिया. फूलन के जीवनी पर आधारित फ़िल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में लिखा है कि वह 20 साल की उम्र में अपने एक रिश्तेदार की मदद से डाकुओं के गिरोह में शामिल हो गई। हथियार उठाने के बाद सबसे पहले फूलन अपने पति के गांव पहुंची, जहां उसने उसे घर से निकाल कर लोगों की भीड़ के सामने चाकू मार दिया गिरोह के सरदार बाबू गुज्जर का दिल फूलन देवी पर आ गया. यह बस उसकी शारीरिक भूख थी। उसने फूलन को बहलाने की कोशिश की। विक्रम मल्लाह, जिसका स्थान गिरोह में बाबू गुज्जर के बाद आता था, उसने इसका विरोध किया. बावजूद इसके सरदार नहीं माना और फूलन के साथ जबरदस्ती की. बाद में विक्रम ने बाबू की हत्या कर दी.

फूलन के प्रतिशोध की आग

14 फरवरी 1981 को प्रतिशोध की आग में उबल रही फूलन अपने गिरोह के साथ पुलिस के भेस में बेहमई गांव पहुंची. यहां एक शादी का आयोजन था, जिसमे बाहरी गांव के लोग भी आये हुए थे.

फूलन और उसके गिरोह ने बंदूक के ज़ोर पर पूरे गांव को घेर लिया तथा ठाकुर जाति के 21 मर्दों को एक लाइन में खड़ा होने का आदेश दिया. उन 21 में से दो उनके पुराने गिरोह के डाकू भी थे, लेकिन ये वो नहीं थे जिन्होंने फूलन के साथ दुष्कर्म किया था. अपने दुश्मनों को वहां ना देख कर फूलन देवी बुरी तरह बौखला गयी. उस घटना के चश्मदीद व उन 21 लोगों में एक मात्र जीवित बचे चंदर सिंह.

जिन्होंने बाद में बीबीसी को बताया था, “फूलन ने सबसे पहले पूछा कि लाला राम कहां है? उसके मन मुताबिक जवाब ना मिलने के बाद उसने सभी को बैठने के लिए कहा, फिर खड़े होने के लिए. कई बार ऐसा करने के बाद अचानक से ही उसने अपने साथियों को फ़ायर करने का आदेश दे दिया. सौभाग्य से चंदन सिंह अकेले ऐसे थे जो गोली लगने के बाद भी जिंदा रह।

फूलन का आत्मसमर्पण

बेहमई नरसंहार के बाद फूलन ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर हुई. लूट-पाट करना, अमीरों के बच्चों को फिरौती के लिए अगवा करना, आने जाने वाली लौरियों को लूटना फूलन के गिरोह का मुख्य काम था. कुछ सालों तक यह चला, फिर वह किसी तरह से वह आत्म समर्पण के लिए राजी हो गई. लेकिन इसके लिए उनकी अपनी शर्तें थीं. वह जानती थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस उसकी जान की दुश्मन है, इसीलिए अपनी पहली शर्त के तहत मध्यप्रदेश पुलिस के सामने ही आत्मसमर्पण करने की बात कही.